• भाजपा में चार नेताओं का “गैंग” सक्रिय – दीनू उपाध्याय गिरोह से जुड़ाव, पर पार्टी खामोश!
• स्वच्छ राजनीति के दावे पर लगा दाग, चार भाजपा नेता पुलिस रिकॉर्ड में गैंगस्टर के रूप में दर्ज
• कार्यवाही से परहेज़, संगठन में मची हलचल, आलाकमान मौन
“भ्रष्टाचार और अपराधमुक्त राजनीति” की दुहाई देने वाली भाजपा में अब गुंडों और हिस्ट्रीशीटरों का नेटवर्क गहराई तक पैठ चुका है।
कानपुर में चार भाजपा नेता सीधे तौर पर दीनू उपाध्याय गैंग से जुड़े पाए गए हैं। पुलिस रिकॉर्ड में नाम दर्ज है, गैंगस्टर एक्ट तक लग चुका है, लेकिन पार्टी नेतृत्व अब तक बेदाग़ चुप्पी साधे बैठा है।
चार चेहरे, चार फाइलें, एक ही सवाल – कार्यवाही कब?
1️⃣ नारायण सिंह भदौरिया –
पहले भी कई मुकदमों में नामजद, दक्षिण क्षेत्र के पुराने नेता।
पुलिस अभिरक्षा से अभियुक्त को भगाने का गंभीर आरोप।
ऑपरेशन महाकाल के दौरान कई थानों की एफआईआर में नाम आया, फिर भी पार्टी ने चुप्पी साध ली।
2️⃣ दीपक जादौन –
दीनू उपाध्याय गैंग का सक्रिय सदस्य।
भाजपा किसान मोर्चा का पूर्व सह-मीडिया प्रभारी रह चुका।
पुलिस ने गैंगस्टर एक्ट में नाम दर्ज किया, मगर संगठन में अब भी “सम्मानित कार्यकर्ता” के रूप में मौजूद।
3️⃣ अमन शुक्ला उर्फ महेश्वरी प्रसाद –
भाजपा युवा मोर्चा की क्षेत्रीय कमेटी का पदाधिकारी रह चुका।
भूमाफिया गिरोह के लिए फील्ड कनेक्शन संभालने का आरोप।
गैंगस्टर में नाम आने के बावजूद कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं।
4️⃣ रचित पाठक –
कन्नौज विधानसभा चुनाव में जिम्मेदारी निभाने वाला कार्यकर्ता।
गैंगस्टर फाइल में सक्रिय सहयोगी के तौर पर नाम दर्ज।
पार्टी की बैठकों में अब भी सक्रिय, जबकि पुलिस रिकॉर्ड में “संदिग्ध” के रूप में चिन्हित।
⚔️ पार्टी के भीतर मतभेद – “हिस्ट्रीशीटर या हितैषी?”
भाजपा के अंदर अब साफ दो धड़े बन चुके हैं —
पुराने कार्यकर्ता कह रहे हैं: “संगठन में अपराधियों की जगह नहीं।”
जबकि नए नेता तर्क देते हैं: “अतीत को भूलकर सुधार का मौका देना चाहिए।”
लेकिन जनता पूछ रही है – अगर यह सुधार है, तो फिर पुलिस फाइलें अब भी क्यों खुली हैं?
वीरेंद्र दुबे, अरविंदराज त्रिपाठी, संदीप ठाकुर और राजबल्लभ पांडेय जैसे नाम पहले से ही विवादों में हैं, अब चार नए नामों ने पार्टी की साख को और हिला दिया है।
🚨 कार्यवाही या आशीर्वाद? – कमेटियों का पल्ला झाड़ना जारी
चारों नेताओं के खिलाफ जब गैंगस्टर एक्ट के तहत गिरफ्तारी की तलवार लटकी, तो संगठन में अफरातफरी मच गई।
लेकिन कार्रवाई की जगह अब जिम्मेदारी पास करने का खेल चल रहा है —
क्षेत्रीय अध्यक्ष प्रकाश पाल – “जिला कमेटियों की रिपोर्ट का इंतजार है, फिर निर्णय होगा।”
उत्तर जिलाध्यक्ष अनिल दीक्षित – “दो-तीन दिन में साक्ष्यों के साथ रिपोर्ट भेजेंगे।”
दक्षिण जिलाध्यक्ष शिवराम सिंह – “ऑनलाइन सदस्य बने लोग बाहर किए जाएंगे।”
सवाल वही है — रिपोर्ट तैयार होगी या फिर रफादफा?
