“अपराधियों को मिट्टी में मिला दूंगा” कहने वाले सूबे के मुखिया को खुली चुनौती दे रहा है पनकी का हिस्ट्रीशीटर!

14 मुकदमों के बावजूद न थाने का डर, न कानून का असर – पुलिस की मिलीभगत से अपराधी बेलगाम!

कानपुर,प्रदेश के मुखिया जहां मंच से गर्जना करते हैं कि “अपराधी या तो जेल में होंगे या जमीन के नीचे”, वहीं कानपुर नगर का पनकी थाना क्षेत्र इस दावे को खुली चुनौती देता दिखाई दे रहा है।

यहां का हिस्ट्रीशीटर पंकज सिंह उर्फ नुनियां — 14 आपराधिक मुकदमों का आरोपी, शहरबदर अपराधी — आज भी खुलेआम घूम रहा है। और हैरत की बात यह है कि पुलिस उसकी हिफाजत में खड़ी नजर आ रही है!

गवाही की कीमत – जान की धमकी और तेज़ाब का डर,पीड़ित हर्षित पाण्डेय और उनके दलित मित्र सत्यम गौतम के अनुसार, अपराधी ने उन्हें न सिर्फ जान से मारने की धमकी दी बल्कि हर्षित की पत्नी के चेहरे पर तेज़ाब डालने की धमकी भी दी।

दोनों ने बताया कि जब उन्होंने पुलिस को लिखित तहरीर दी तो “जातिसूचक गालियां, तेज़ाब की धमकी और हत्या की मंशा” जैसी गंभीर बातें तहरीर से गायब कर दी गईं, और मुकदमा साधारण धाराओं में दर्ज किया गया — ताकि अपराधी बच निकले!

“टॉप-10 अपराधी” को थाने से सुरक्षा!

पीड़ितों के अनुसार, जिस अपराधी का नाम पनकी थाना के टॉप-10 अपराधियों के बोर्ड पर दर्ज है, वही पुलिस द्वारा दबिश देने पर उनके सामने आंखों से ओझल हो जाता है. वहीं सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार उक्त अपराधी थाने के अंदर ‘सम्मानित मेहमान’ की तरह पेश आता है।

अगर यह सच है, तो यह न केवल कानून पर धब्बा है बल्कि मुख्यमंत्री के आदेशों की खुली अवहेलना भी है।

“मुख्यमंत्री का आदेश केवल भाषणों तक?”

प्रदेश के मुखिया कहते हैं —“अपराधी माफ नहीं किए जाएंगे, मिट्टी में मिला दिए जाएंगे।”लेकिन सवाल है “क्या पनकी थाने में मिट्टी में मिलाने का मतलब तहरीर से धाराएं मिटा देना है?”

14 मुकदमों के बाद भी आरोपी गिरफ्त से बाहर है।

ऐसा लगता है जैसे पनकी थाना किसी अपराधी के लिए सेफ हाउस बन चुका हो और पुलिस का यूनिफॉर्म अब संरक्षण की ढाल बन गया है।

दलित पैन्थर और अर्जक अधिकार दल ने इस पूरे प्रकरण को राज्य अनुसूचित जाति आयोग और मानवाधिकार आयोग में उठाने की घोषणा की है।

उनका कहना है कि यह केवल व्यक्तिगत विवाद नहीं बल्कि कानून, जाति और न्याय व्यवस्था पर खुली चोट है।

सवालों के घेरे में पनकी पुलिस

अगर आरोपी पर 14 मुकदमे दर्ज हैं, तो गिरफ्तारी क्यों नहीं?

जिला बदर आदेश के बावजूद वह खुलेआम घूम कैसे रहा है?

पुलिस ने पीड़ितों की तहरीर से गंभीर धाराएं हटाईं क्यों?

क्या अपराधी को राजनीतिक या विभागीय संरक्षण प्राप्त है?

जब पुलिस खुद अपराधी के साथ खड़ी हो जाए, तो आम नागरिक किससे न्याय मांगे? पनकी थाने की यह चुप्पी और कार्रवाई से बचने का रवैया अब पूरे कानपुर की साख पर दाग बन चुका है।

यह सिर्फ एक अपराधी की कहानी नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की पोल है जो अपराधी को पालती है और गवाह को सज़ा देती है।

अगर सरकार वाकई “अपराधियों को मिट्टी में मिलाने” का इरादा रखती है, तो पनकी थाना उसका पहला परीक्षण स्थल होना चाहिए।

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